19वीं शताब्दी में भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण

लेखक

  • डॉ. लक्ष्मी देवी सैनी

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https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i1.927

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सांस्कृतिक पुनर्जागरण##common.commaListSeparator## राजा राममोहन राय##common.commaListSeparator## पश्चिमी शिक्षा और प्रभाव##common.commaListSeparator## सामाजिक सुधार आंदोलन##common.commaListSeparator## भारतीय नवजागरण

सार

19वीं शताब्दी में भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण एक ऐसा युग था जिसमें सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक क्षेत्रों में व्यापक बदलाव देखने को मिले। यह पुनर्जागरण ब्रिटिश शासन, पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक विचारधाराओं के प्रभाव से उत्पन्न हुआ। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती जैसे नेताओं ने अंधविश्वास, सती प्रथा, बाल विवाह और जातिवाद जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया तथा महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया। बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में यह आंदोलन क्षेत्रीय स्तर पर भी विकसित हुआ। साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा और धार्मिक सुधारों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैली। इस आंदोलन ने भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना सिखाया और स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक आधार को मज़बूती प्रदान की। यह काल आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ।

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प्रकाशित

2025-09-24

अंक

खंड

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