आजादी के बाद का स्त्री और हिंदी साहित्य : राजेंद्र यादव के कथा-साहित्य का विशेष संदर्भ

Authors

  • डॉ. पंढरीनाथ शिवदास पाटिल

DOI:

https://doi.org/10.8224/journaloi.v70i4.837

Abstract

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यासकारों में राजेंद्र यादव का नाम एक चर्चित उपन्यासकार के रूप में लिया जाता है। स्वतंत्रता के बाद राजेंद्र यादव, मोहन राकेश तथा कमलेश्वर को विवादित रचनाकारों और नई कहानी आंदोलन के प्रवर्तकों के रूप में भी जाना जाता है। इन तीनों साहित्यकारों ने नवीन परिस्थितियों, विचारधाराओं और मान्यताओं के साथ अपनी रचनाओं में नए मूल्यों को स्थापित किया। राजेंद्र यादव की गणना उन साहित्यकारों में की जाती है जो उपन्यासकार, कहानीकार, आलोचक एवं संपादक के रूप में विख्यात हैं। 'नारी' शब्द के समानार्थक- स्त्री, (लड़की) महिला, औरत, जनाना, कामिनी आदि नामों को भी प्रयोग में लाया जाता है। राजेंद्र यादव के शब्दों में ही अगर कहें तो "स्त्री हमारा अंश और विस्तार है। वह हमारी ऐसी जन्मभूमि है जिसे हमने अपना उपनिवेश बना लिया है। हमारी सोच और संस्कृति के सारे सामंती और साम्राज्यवादी मूल्य उपनिवेशों के आधिपत्य और शोषण को जायज ठहराने की मानसिकता से पैदा होते हैं। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में दुनियाभर में जो उपनिवेश भौतिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र हुए उनमें 'स्त्री' नाम का उपनिवेश भी है। दलित हमारे घरों और बस्तियों से बाहर होता है। स्त्री हमारे भीतर है, इसलिए उसका संघर्ष ज्यादा जटिल है।”1

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Published

2000

How to Cite

डॉ. पंढरीनाथ शिवदास पाटिल. (2025). आजादी के बाद का स्त्री और हिंदी साहित्य : राजेंद्र यादव के कथा-साहित्य का विशेष संदर्भ. Journal of the Oriental Institute, ISSN:0030-5324 UGC CARE Group 1, 70(4), 189–193. https://doi.org/10.8224/journaloi.v70i4.837

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