महाराष्ट्र की घुमंतू वासुदेव परंपरा
DOI:
https://doi.org/10.8224/journaloi.v69i2.835Abstract
महाराष्ट्र में विमुक्त घुमंतू समुदाय की अनेक जनजातियाँ हैं। वासुदेव, वाघ्या-मुरली, नंदी वाले, ज्योतिष, वैदू, गाडिया लोहार, बेलदार, गोंधली, कासीकपड़ी, रावल, गवली, पंगुल, भराड़ी, कोलाटी ऐसी कई घुमंतू जनजातियाँ महाराष्ट्र में अस्तित्व में हैं। भारतीय लोककला एवं लोकधारा की पहचान वासुदेव, वाघ्या-मुरली, गोंधली, भारुड़, जोगती, पोतराज आदि के माध्यम से होती है। ये लोक उपासक के रूप में जाने जाते हैं। वासुदेव पारंपरिक कलारूप है जो ज्यादातर श्रीहरि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। महाराष्ट्र में वासुदेव परंपरा सदियों से चली आ रही है। भारत में वासुदेव कृष्ण उपासकों का एक समुदाय है जो मुख्यतः महाराष्ट्र में पाया जाता है। वे उद्धार करने के लिए गाँवों और कस्बों में घूमकर भक्ति गीत गाकर लोगों द्वारा दी गई भिक्षा पर जीवनयापन करते हैं। समुदाय के कुछ लोग खेती और जानवरों का पालन भी करते हैं। वासुदेव की दीक्षा एक समारोह के माध्यम से होती है जो एक ब्राहमण लड़के के दीक्षा समारोह के समान होती है। इसके लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें पुजारी लड़के के कान में मंत्र बताता है, फिर वह वासुदेव समुदाय का हिस्सा बन जाता है। वासुदेव अकेले गाँव में घूमते हैं लेकिन कभी-कभी वे समूह के रूप में भी एक साथ होते हैं। वासुदेव प्रातः काल गाँव में घूम-घूमकर भक्ति गीत गाते हैं। इनकी उत्पत्ति के संबंध में कई कहानियाँ है। इनमें से कई पौराणिक प्रकृति की है। इनके अस्तित्व का पहला दर्ज प्रमाण नौवीं शताब्दी के धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।



