सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन में ग्रामीण एवं नगरीय महिलाओं की स्थिति का एक अध्ययन
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https://doi.org/10.8224/journaloi.v73i1.92सार
परिवर्तन प्रकृति का एक शाश्वत एवं अटल नियम है। सामाजिक परिवर्तन एक अवश्यंभावी तथ्य है। इसकी निश्चितता को प्रकट करते हुए डेविस का कथन है, ‘‘हम स्थायितत्व एवं सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील हो सकते हैं, समाज के स्थायित्व का भ्रम चारों ओर फैलाया जा सकता है, निश्चयात्मकता के प्रति खोज निरन्तर बनी रह सकती और विश्य अनंत है - इस विषय में हमारा विश्वास दृढ़ हो सकता है, लेकिन यह तथ्य सदैव विद्यमान रहने वाला है कि विश्व के अन्य तत्वों की तरह समाज अपरिहार्य रूप से और बिना किसी डर के सदैव परिवर्तित होता रहता है।’’1निश्चित रूप से मानव समाज भी उसी प्रकृति का अंश होने के कारण परिवर्तनशील है, प्रकृति को स्वीकार करते हुए प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर ने लिखा है ‘समाज परिवर्तनशील एवं गत्यात्मक है।’2ग्रीक विद्वान हेराक्लाइटिस ने भी लिखा था कि सभी वस्तुएँ परिवर्तन के बहाव में है। किसी भी समाज को उचित दिशा तभी प्राप्त होती है जब उसमें आवश्यक परिवर्तन होता है।