‘‘सामान्य एवं विकलांग विद्यार्थिंयों के सामाजिक विकास का एक तुलनात्मक अध्ययन: मुरादाबाद क्षेत्र के संदर्भ में‘‘
##semicolon##
https://doi.org/10.8224/journaloi.v73i3.298सार
सामाजिक विकास से तात्पर्य व्यक्ति के समाज में घुलने-मिलने, संबंध बनाने, और समाज के नियमों को समझने से है। ’’सामान्य विद्यार्थी’’ शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम होते हैं और उनका सामाजिक विकास शिक्षा, पारिवारिक समर्थन, और समाज के साथ बातचीत से होता है। वे सामाजिक गतिविधियों में आसानी से भाग ले सकते हैं और उनके लिए सामाजिक विकास की प्रक्रिया सरल होती है। ‘‘विकलांग विद्यार्थी’’, शारीरिक या मानसिक सीमाओं के कारण, सामाजिक विकास में चुनौतियों का सामना करते हैं। उनके लिए सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना कठिन हो सकता है और उन्हें समाज से भेदभाव भी सहना पड़ता है। उनके विकास के लिए विशेष शिक्षा, संसाधनों, और समाज के सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। ’’सामान्य विद्यार्थी’’ समाज के दबाव और प्रतिस्पर्धा का सामना करते हैं, जबकि ’’विकलांग विद्यार्थी’’ भेदभाव, सामाजिक अस्वीकार्यता और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों से गुजरते हैं। समाधान के रूप में ’’समावेशी शिक्षा’’, ’’सामाजिक जागरूकता’’, और ’’विशेष शिक्षण सुविधाओं’’ की जरूरत पर जोर दिया गया है ताकि विकलांग विद्यार्थी भी सामान्य विद्यार्थियों की तरह समाज में सफलतापूर्वक घुल-मिल सकें। शोध अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष - मुरादाबाद जनपद में अध्ययनरत् उच्च प्राथमिक स्तर के सामान्य एवं विकलांग विद्यार्थिंयों के सामाजिक विकास में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया।