रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उपन्यासों में पहाड़ी जनजीवन

लेखक

  • शोधार्थी अभिषेक कुमार

सार

साहित्य समाज का दर्पण होता है। किसी भी समाज के समकालीन संदर्भों को समझने का सबसे बेहतर माध्यम साहित्य होता है। साहित्यकार अपने साहित्य में न केवल आत्मानुभूति को शब्दों के रूप में अलंकृत करता है बल्कि समाज के स्वरूप को साहित्य में अभिव्यक्त कर उसके प्रत्येक पहलू को वर्णित करता है। रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ पहाड़ी जनजीवन की पृष्ठभूमि पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अंकन का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी जनसमुदाय की जीवन शैली के विभिन्न रंग-रूप की संस्कृति को अपनी लेखनी में उकेरा है। वहीं उसके उत्थान के लिए जीवन के विभिन्न समस्याओं के समाधान भी खोज निकाला है। स्त्री शिक्षा पर विशेष बल देते हुए स्त्री को समाज में संघर्षशील बनाने तथा उसके सशक्तिकरण पर विशेष बल दिया एवं अपने कथा साहित्य में स्त्री पात्र को कभी असहाय मजबूर या हीनभावना से ग्रसित नहीं होने देते बल्कि उसे कठिनाइयों से लड़कर संघर्षशील बनने,उसे आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं। पहाड़ों से पलायन की समस्या और उसके समाधान के लिए युवा पीढ़ी को आगे आकर समाज का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित करते है, युवा पीढ़ी अपने परिवार, अपनी जन्मभूमि, अपनी संस्कृति, अपने समाज, एवं अपने परिवेश के प्रति समर्पित भाव को जाग्रित कर सके और वहीं गाँव में रोजगार के अवसर बनाने के लिए उन्हें जागरूक करे ताकि युवा पीढ़ी का पलायन रुक सके, पहाड़ी युवा वहीं गाँव में आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन सम्मान पूर्वक व्यतीत कर सके।

प्रकाशित

2024-09-12

अंक

खंड

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