राजस्थान के प्रमुख अभिलेखों एवं सिक्कों की भाषा एवं लिपि

लेखक

  • प्रियंका राठौड

सार

संसार में लिपि के विकास का प्रथम चरण चित्रलिपि ही माना गया है, जिसके विकास का अगला चरण भावमूलक लिपि है व भाषा मानव को अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है एवं लिपि इसका माध्यम। हमारे पूर्वज न केवल साक्षर थे अपितु ज्ञान-विज्ञान, दर्शन एवं साहित्य के क्षेत्र में उनका अति सराहनीय योगदान रहा। यह विभित्र भाषाओं एवं लिपि के माध्यम से अभिव्यक्त हुआ है। राजस्थान के विभिन्न अंचलों से प्राप्त प्राचीन शिलालेख, ताम्रपत्र, सिक्के एवं मुहर आदि पर उत्कीर्ण लेखों से राजस्थान में भाषा एवं लिपि के विकास को समझा जा सकता है। लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई लेखन की समृद्ध परम्परा‘ की निरन्तरता को इस लेख के माध्यम से रेखांकित करने का प्रयास है।
शिलालेख या अभिलेख प्राचीन इतिहास जानने का एक प्रमुख साधन हैं। इनके माध्यम से हमें तत्कालीन समाज और संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है। इन शिलालेखों के माध्यम से ही तत्कालीन शासक के साम्राज्य की सीमाओं का निर्धारण भी होता है। भारतीय इतिहास के सन्दर्भ में सबसे पुराने अभिलेख सम्राट अशोक के प्राप्त हुए हैं।

प्रकाशित

2024-09-07

अंक

खंड

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