हिन्‍दी की वृद्ध जीवनपरक कहानियों में भारतीय ज्ञान परम्‍परा

Authors

  • डॉ. लक्ष्‍मीकान्‍त चंदेला

DOI:

https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i2.849

Keywords:

वृद्ध, जीवन, कहानी और ज्ञान-परम्‍परा

Abstract

सारांश – वृद्ध ज्ञान की सबसे श्रेष्‍ठ व शाश्‍वत निशानी है जो अभाव और अनुभव से प्राप्‍त होती है इसलिए प्राणिजगत् के लिए धरोहर हैं। हिन्‍दी की वृद्ध जीवनपरक कहानियाँ इन्‍हीं सारभूत अनुभवों को अपना कथ्‍य बनाती हुई संवेदना का संसार व्‍यापक बनाती हैं बल्कि उन्‍हें ठीक-ठीक सँजो पाती हैं। का‍लान्‍तर में यही संपुँजित ज्ञान जीवन के नये-नये प्रतिमान गढ़ता है।

      भारतीय आर्ष ग्रंथों की बात करें तो किसी भी सभा में वृद्धों की उपस्थिति को महत्ता दी और कहा कि- ‘न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा/ वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्’ (अर्थात् जिस सभा में कोई वृद्ध नहीं है वह सभा महत्त्वहीन है और जो वृद्ध सत्‍य एवं धर्मनिष्‍ठ नहीं है वह वास्‍तव में वद्ध नहीं है)

      अस्‍तु, हिन्‍दी की वृद्ध जीवनपरक कहानियाँ अनुभवजनित ज्ञान का हेतु बनीं तथापि भारतीय ज्ञान परम्‍परा का अजस्र स्रोत हैं। निश्‍चित ही बुढ़ापा ज्ञान की पोटरी होता है।     

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Published

2000

How to Cite

डॉ. लक्ष्‍मीकान्‍त चंदेला. (2025). हिन्‍दी की वृद्ध जीवनपरक कहानियों में भारतीय ज्ञान परम्‍परा. Journal of the Oriental Institute, ISSN:0030-5324 UGC CARE Group 1, 74(2), 403–410. https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i2.849

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