सीमाओं से परे: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की अंतरराष्ट्रीय यात्रा और वैश्विक प्रतिध्वनि

Authors

  • ऋतु भारद्वाज and डॉ प्रतिभा शर्मा

DOI:

https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i1.887

Abstract

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में शास्त्रीय संगीत संगीत के नाम से विख्यात है। विश्व के हर कोने में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत देखने और सुनने को मिलता है। संगीत की तीनों ही धारायें गायन,वादन और नृत्य आज विश्व भर में प्रचलित है।वादन के श्रेत्र की बात करें तो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रयोग किये जानें वाले वाद्ययंत्रों सितार, संतूर, वीणा, बाँसुरी आदि वाद्य आज विदेशों में बजाए जाते है, परन्तु सितार आज विश्वस्तर पर बजाये जाने वाला सबसे अधिक प्रचालित व प्रमुख वाद्य है। सितार वाद्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलवाने में पं रविशंकर जी का अहम योगदान रहा है। 1960 के दौर में पं. रवि शंकर जी ने सितार वादन का प्रदर्शन विदेशों में करना शुरु किया जहां से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और सितार का प्रचार हुया। आज विदेशों में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने के लिये हमारे ही उच्चकोटि के कलाकारों ने संगीत विद्यालयों का निर्माण किया। आज हम सोशल मीडिया पर विदेशियों को सितार वादन करते देखते और सुनते है ।

Published

2000

How to Cite

ऋतु भारद्वाज and डॉ प्रतिभा शर्मा. (2025). सीमाओं से परे: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की अंतरराष्ट्रीय यात्रा और वैश्विक प्रतिध्वनि. Journal of the Oriental Institute, ISSN:0030-5324 UGC CARE Group 1, 74(1), 1041–1046. https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i1.887

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