हिंदुस्तानी उपशास्त्रीय संगीत एवं परंपरा कल, आज और कल:- बनारस के विशेष संदर्भ मे
DOI:
https://doi.org/10.8224/journaloi.v74i1.875Abstract
भारत की संस्कृति साधकों के संस्कृति रही है। साधना में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले ऋषियों के गौरवशाली इतिहास को संजोते हुए भारतीय संस्कृति वर्तमान काल में विविध क्षेत्र के साधकों के सृजनार्थ उचित वातावरण का निर्माण करती रहती है। साधना के विविध क्षेत्रों में कला की साधना तथा कला के साधकों के विशिष्ट भूमिका रही है।भारतीय संस्कृति विविध कला साधकों को अपने अंक में धारण करके उन्हें पुष्पित तथा पल्लवित होने का उचित अवसर प्रदान करती रहती है। ऐसे विभिन्न स्थान कला के लिए उपजाऊ है किंतु उत्तर वाहिनी मां गंगा के तट पर अवस्थित काशी अथवा बनारस साहित्य, संस्कृति तथा संगीत के लिए भी विश्व प्रसिद्ध स्थान है। बनारस की पावन धरती पर जहां पाणिनि की अष्टाध्याई का अवतरण हुआ तो वही तुलसीदास जी द्वारा रामचरितमानस का लेखन भी गंगा के पावन तट पर ही हुआ। धार्मिक नगर होने के बावजूद भी बनारस अनेक क्षेत्रों के लिए जाना जाता है। भारतवर्ष के प्राचीनतम नगरों में से एक काशी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि एवं विशाल सांगीतिक परंपरा के कारण प्राचीन काल से ही आकर्षण का केंद्र रहा है, यहां का संगीत अनेक सौंदर्यात्मक पहलुओं को अपने आंचल में समेटे हुए हैं न केवल गायन अपितु वादन तथा नृत्य के क्षेत्र में भी भारतीय संस्कृति के विभिन्न रंग बनारस की संगीत परंपरा में परिलक्षित होते हैं।