छायावाद और प्रकृति का संबंध

Authors

  • Dr Kamlesh Devi

DOI:

https://doi.org/10.8224/journaloi.v73i3.252

Abstract

छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है, जिसमें कवियों ने व्यक्तिगत भावनाओं, रहस्यमय अनुभूतियों और प्रकृति के सौंदर्य को प्रमुख रूप से स्थान दिया है। छायावादी काव्य में प्रकृति का चित्रण अत्यंत भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप में किया गया है। कवियों ने प्रकृति को न केवल एक भौतिक वस्तु के रूप में देखा, बल्कि उसे जीवन की जटिलताओं और आंतरिक भावनाओं का प्रतीक भी माना। प्रकृति का मानवीकरण करके, उन्होंने अपने भीतर की वेदनाओं, चिंताओं और इच्छाओं को अभिव्यक्त किया। छायावादी कवियों जैसे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', और महादेवी वर्मा ने प्रकृति को आत्मा की गहराइयों से जोड़ा और उसे मनुष्य के जीवन के संघर्षों, आशाओं और सपनों का दर्पण बनाया। पहाड़, नदी, आकाश, वृक्ष, फूल आदि प्राकृतिक तत्वों का उपयोग उन्होंने मानवीय भावनाओं को व्यक्त करने के साधन के रूप में किया। छायावाद में प्रकृति केवल सौंदर्य का स्रोत नहीं है, बल्कि जीवन के रहस्य और अदृश्य सत्य को उद्घाटित करने का माध्यम भी है। इस प्रकार, छायावाद और प्रकृति के बीच एक गहन भावनात्मक और दार्शनिक संबंध है, जो इस युग की काव्य-परंपरा की विशिष्टता को दर्शाता है।

Published

2000

How to Cite

Dr Kamlesh Devi. (2024). छायावाद और प्रकृति का संबंध. Journal of the Oriental Institute, ISSN:0030-5324 UGC CARE Group 1, 73(3), 574–586. https://doi.org/10.8224/journaloi.v73i3.252

Issue

Section

Articles